अनछुए पल
https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/07/04
वो अनछुए पल,
जिनको मैंने जिया नहीं,
उन्मुक्त जीवन की छटा थी,
या कि नव सृजन. की
कपोल. कल्पित परिकल्पना ।
जो भी थी मुमक्षा,
विलय होने की ,
उनमें समा जीने की,
सुगंध का फूलों में,
होना बयाँ. करती थी ।
उन पलो में जीने की,
ललक इतनी थी कि,
ऊँची-नीची डगर की,
समझ कितनी. थी ।
उनमें परियों की कथा थी,
कि सतरंगी जीवन जीने की,
अदा थी जो भी थी ।
उन अनछुए पल की,
खता इतनी थी ,
कि समय की नाजुकता ,
उनमें बसा करती थी ।।
bahut khoob
Thanks Avantika ji
वाह