अलख जगा आकाश
करुणा की बारिश हुई, लथपथ हुआ शरीर !
देहियां में दीपक जला, लउका परम शरीर !!
एक रूप सब में बसा, एक ही बना अनेक !
सागर गागर में दिखे, सूरज एक अनेक !!
कमल खिला आकाश में, देहियां हुआ अंजोर !
अमृत टपका पहर भर, फूल खिले चहुँ ओर !!
नश्वर सुख संसार का, अनजाने दुःख पाय !
जो ‘मैं’ को जाने, मिले परमानन्द प्रकाश !!
बूँद-बूँद सागर बना, कण-कण बना पहाड़ !
जो जाने सागर बने, धरती उठा आकाश !!
अमृत बरसे रात दिन, पान करें जनकार !
काल जाल से परे वे, ज्योति भरे संसार !!
आया तार आकाश से, आवत एक विमान !
उठ दुल्हिन श्रृंगार कर, सजा सेज सामान !!
Umda rachna!!
NICE