अलख जगा आकाश
‘मोती’ रोवत थान पर, माई गयी आकाश !
किसकी माई कब गयी, वह तो तेरे पास !!
अलख जगा आकाश में, सुना जो भागत जाय !
बाकी सब नाचत फिरें, जग माया के साथ !!
काँव-काँव कौआ करे, उसका दिया सन्देश !
एक रात बस ठहर कर, निकल दूसरो देश !!
निज स्वरुप को त्याग कर, नदिया बनी समुंद्र !
जीव मिला पर्ब्रम्हा से, धरा ब्रह्मा का रूप !!
मोती न आवत दिखा, न जाते कोई देख !
जाते हल्ला हो उठा, ना जाना कोई भेद !!
अचरज देखा आज मैं, चेतन जड़ बन जाय !
जड़ चेतन का स्वांग भर, रोवे हँसे ठठाय !!
भांग-धतूरा खाय के, ‘मोती’ चढ़ा आकाश !
शून्य की घंटी ज्यों बजी, उलटा गिरा पाताल !!
धन खातिर योगी बने, ज्ञान बघारे रोज !
माया-विषया नित तपें, वे क्या जानें योग !!
जड़-चेतन सब में वही, सब में उसका बास !
ग्रह तारे पिण्डी सकल, सब में वही प्रकाश !!
रेत की गिनती हो सके, गिनती सिर के बाल !
उसकी गिनती को करे, जिसका आदि न काल !!
तेरे डिग लेटा पड़ा, तेरा प्रियतम मीत !
कब तक तू सोयी पड़ी, उठ मोती कर प्रीति !!
कैसा गुरु, किसका गुरु, सब माया के दास !
मेरा गुरु बस एक है, जनम मरण के साथ !!
हाड़ माँस को जोड़ कर, चर्बी दिया चढ़ाय !
सवा टका के भवन में, उसको दिया बिठाय !!
धर्म अधर्म की बात पर, रोज़ बढ़े तकरार !
‘मोती’ सब विरथा लड़ें, बिन जाने सरकार !!
फूल खिलें इक दिन रहें, रात होय मुरझायँ !
सब मानव की गति यही, फिर कांहे इतराय !!
प्रेम बँधा संसार है, प्रेम ही जग में सार !
प्रेम बिना कैसे मिले, जग का तारनहार !!
माया चोंगा पहन कर, ‘मोती’ गया बजार !
नकली को असली समझ, रोज़ करे व्यापार !!
पण्डित, मुल्ला, पादरी, घर-घर आग लगाय !
नफरत की आँधी चला, दीपक दिया बुझाय !!
फूला फूल पलाश का, आग लगा चहुँओर !
मेरा घर धूं-धूं जला, भीतर हुआ अंजोर !!
उजड़ा घर हँसा उड़ा, बसा दूसरो गेह !
योनि योनि भटकत फिरे, भिन्न भिन्न धरे देह !!
एक दीप जैसे जला, लाखों दीप जलें !
धरती आलोकित हुई, तम की घटा छंटे !!
भीतर झाँका वह दिखा, बाहर घोर अन्हार !
बाहर भटकत मैं फिरा, मिला न मेरा यार !!
ढूढत ढूढत मैं थका, “काल” मिले जब होय !
मैं “अकाल” निशचित रहा, काल करे क्या होय !!
तेल चुका बाती बुझी, सुगना उड़ा विदेश !
कर्म साथ लेता गया, कुछ भी बचा न शेष !!
प्रियतम तेरे रूप पर, मोहित जग संसार !
अपना मेरा कुछ नहीं, कैसे पाऊँ पार !!
भीतर जलता आग है, बाहर धधके आग !
ऐसी अँधेरी गुफा, ना दिन दिखे प्रकाश !!
Responses