अलख जगे आकाश

तन कुँआ मन गागरी, चंचल डोलत जाय !

खाली का खाली रहे, परम नीर नहिं पाय !!

 

मोती तेरा नूर मैं, देखूं चारों ओर !

धरती नभ चारों दिशा, तू ही तू ही सब ओर !!

 

माया विष को खाय के, मोती पड़ा अचेत !

लाख जतन मैंने कियो, फिर भी भयो न चेत !!

 

सात रज़ाई ओढ़ के, मैं सोअत दिन रात !

साँझ समय आवत दिखा, दुलहा संग बारात !!

 

शोर मचा आवत पिया, चढ़कर पवन तुरंत !

रोवत दुल्हिन चल पड़ी, बाँह पसारे संग !!

 

प्रेम नीर पीकर फिरे, मोती मस्त विभोर  !

तन मन सुधि विसराय के, नाचे संग किशोर !!

 

भाग-भाग मंज़िल पकड़, आवत काल निहार !

मोती संशय छाड़ि के, चल सागर के पार  !!

 

मन स्वचछंद नाचत फिरे, जैसे फिरे समीर  !

हँसा सोवत कर्म वश, वापस मुड़ा फ़क़ीर !!

 

मोती थामे काल गति, पलटा मृत्यु विधान  !

अमर सुधा पी मुदित मन, सोवत चादर तान !!

 

नारी को पापिन कहे, करे नित्य अपमान  !

मोती वह घर छोड़िए, वह दूषित शमशान !!

 

मोती नारी ढोल नहि, जो ताड़न के योग्य !

पंडित मिथ्या बोलते, वे हरि कृपा अयोग्य !!

 

किसकी धाती भक्ति हरि, किसकी सम्पत्ति ज्ञान  !

निम्न जाति शबरी तेरी, जिसका प्रेम महान !!

 

नभ में स्याही छा गयी, घर को मुड़े विहंग !

जल्दी से तैयार हो, जाना प्रियतम संग  !!

 

अग़्नि बरे चहुँ देह में, धूं धूं जले मकान  !

मोती गाये झूम के, राख मले शमशान !!

 

मन डोले चारों दिशा, जैसे फिरे समीर !

मन विकार रथ पर चढ़े, बिखरे माया नीर  !!

 

जड़ चेतन हर जीव में, देखूं तेरा नूर !

मोती सबमें तुम बसे, प्रीतम सखा हज़ूर  !!

 

मोती बैठा आग में, तप कर कुंदन होय !

मन विकार ज्यों ज्यों जले, सोना पक्का होय !!

 

घर में इक विषधर छिपा, मोती लउकत नाहि !

न जाने कब कहाँ डसे, कुछ भी सूझत नाहि !!

 

मोती बैठा सोच में, कैसे जले पार !

सागर की लहरें विषम, चारों ओर अन्हार  !!

 

नैनन से लउकत नहीं, केवल दिखे अन्हार !

मन की नैना खोलिये, तब लउके करतार  !!

 

मोती क्यों दुविधा फँसा, पकड़ राह जो चाह !

काल खड़ा तव शीश पर, जल्दी कूद अथाह !!

 

मोती सरपट भागिए, पीछे आंधी आय !

साईं पग जल्दी धरो, फिर संकट टल जाय  !!

 

धूं धूं धूं देहिया जले, बरसे परमानन्द  !

मैल जले अति जोर से, मोती भयो आनंद !!

 

विदा काल रोअत खड़ी, प्रिय नारी सुकुमार  !

फेंक फटी चुनरी चली, माया तम को फार !!

 

 

मोती क्यों दुविधा फँसा, पकड़ राह जो चाह !

काल खड़ा तव शीश पर, जल्दी कूद अथाह !!

 

पुष्प कमल वन भ्रमर दल, मोहित पान पराग !

अनजाने भावी प्रबल, निशि दिन करत बिलास !!

 

 

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