अश्को की शबनमी लड़ी
दृग कोमल ढूँढ़ रहे,
अश्को की शबनमी लड़ी,
भावनाओं में जो बसती,
सुख -दुख में बूँद-बूँद बरसती।
सागर में जा मिली या,
कि सीप में मोती बनी,
आह! मैं तो नहीं पी रही,
घूँट- घूँट घुटन भरी ।
भावनाओं की उथल- पुथल,
कहाँ गयी सुख-दुख की कोलाहल,
बोझिल पलकें हो चली,
नज़रे फिर भी शुष्क पड़ी ।
दिल का दरिया सूख चला,
सुख -दुख अब कैसे पलें,
करूण क्रंदन गरजते बादल,
सम हुए,बरसते-बरसते रूक पड़े ।
दृग कोमल ढूँढ़ रहे ,
अश्को की शबनमी लड़ी ।।
nice one
Thanks praveen ji
So NIce
Thanks Dev ji