आँखों में अब आंसू छिपाना कितना मुश्किल है

आँखों में अब आंसू छिपाना कितना मुश्किल है
जो रडकते है उनको बहाना कितना मुश्किल है !!
साँसों पे लिख लिया तुझको मैंने आयत की तरह
तक़दीर का ये लिखा मिटाना कितना मुश्किल है !!
न ख़ुशी महसूस होती न कोई गम महसूस होता
भीतर चोट हो तो मुस्कुराना कितना मुश्किल है !!
बनते बनते बिच में ढह जाती है ख्वाबो की हवेली
आँखों की अब नमी सुखाना कितना मुश्किल है !!
बदन पे निकल आये काँटे देख किस मौसम मे
हर ज़ख्म हरा है ये दिखाना कितना मुश्किल है !!
दिल के भीतर ये सब टुटा फूटा सब पुराना है
घर आये मेहमां को ठहराना कितना मुश्किल है !!
ख्वाईश की तितलियों के पर लहू-लुहान से है
बाहरों का उजाड़ा बसाना कितना मुश्किल है !!
कागज़ के कलेजे पे लिखता है पुरव जिगरे-लहू से
हाल-ए-दिल गजल में सुनाना कितना मुश्किल है !!
पुरव गोयल
bahut khoob
so nice
shukriya aap sabhi ka housla afazaai ke liye