आँखों में दर्द की मौजे अब मचलने लगी
आँखों में दर्द की मौजे अब मचलने लगी
साँसे ही मेरी अब साँसों को चुभने लगी
जब से रुत-ए-बाहर तेरी यादों की आई है
जर्द आँसू टूट के आँखें अब उजड़ने लगी
न जाने कौन है मेरे भीतर जो तड़पता है
आहे जिसकी अब कागज पे बिखरने लगी
दर्द जब से सीने में करवटे बदल रहा है
दिल की उदासी अब चहरे पे दिखने लगी
लम्हों को गुजरे हुए कई कई साल हो गये
मेरी धड़कने अब दिन आखरी गिनने लगी
न जाने कौन सा मौसम है मेरी आँखों में
पलकों के निचे जो इतनी काई रहने लगी
ख़ुद ही ख़ुद को लिख रहा हूँ ख़त जब से
तंग हालत पे तहरीरें-पूरव बिलखने लगी
पुरव गोयल
nice one
shukriya aapka housla afazaai keliye
shukriya sahab ji housla afazai keliye