आजाद किसे कहें?
सब बंधे हैं बंधन में।
हर शाम पंछी,
अपना घोंसला तलाशता है।
जहां चाह होती है,
अपने आशियाने की।
वह बोलते नहीं तो क्या,
दिख जाती है उनकी ममता,
जब चुग कर खिलाती है,
दाना अपने बच्चों को।
सिखाती है उसे उड़ना,
पंख फैलाकर,
आजाद किसे कहें ,
सब बंधे हैं बंधन में।