इंसा, इंसा को क्या देता है…….
इंसा, इंसा को क्या देता है
जख्म और सिर्फ दगा देता है
पिला कर घूँट धोके का सबको
ये बड़े आराम से सबको सुला देता है
करता है विश्वास घात चंद रुपयों के खातिर
दिल के रिश्तों को ये क्या सिला देता है
बना लिया है इस ने रुपयों को खुद अपना
इंसानियत को तो अब वो बहा देता है
बागबानी करता है, झूठ के बीज बो कर
धोके का फूल वो खिला देता है
कोई हाल-ऐ-दिल अपना सुनाये कैसे किसी को
हर कोई अब झूठा दिलासा दिला देता है
दोस्त बन कर वार करता है खंज़र से
इस पाक रिश्ते को भी भुला देता है
अपना फ़ायदा देखते ही आज कल वो
दूसरों को रास्ते से हटा देता है
इंसा तो वो शक्श होता है दोस्तों
जो एक बिछड़े को दूसरे से मिला देता है
कभी सोचूंगा मैं फुरसत मे बैठ कर
आखिर इंसा, इंसा को क्या देता है………………….!!
!…..D K…..!
nice
Thanku
Very nice
Thanku so much
Good