उम्मीद

उम्मीद तेरी यह कैसे होती पूरी
इमारत की तामीर थी हवाओं में
…… यूई

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यादें

बेवजह, बेसबब सी खुशी जाने क्यों थीं? चुपके से यादें मेरे दिल में समायीं थीं, अकेले नहीं, काफ़िला संग लाईं थीं, मेरे साथ दोस्ती निभाने…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

आहुति

आहुति ——– अम्मा! तुमसे कहनी एक बात.. कैसे चलीं तुम? बाबूजी से दो कदम पीछे… या चलीं साथ। कैसे रख पाती थीं तुम बाबूजी को…

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