‘ उलझे हुए धागे भी
‘ उलझे हुए धागे भी सुलझाने से सुलझ जाते है
उलझे रिश्तें सुलझाने से और उलझ जाते है /
रिश्तों की नाज़ुकी को क़द्र की पनाह दे दो
वरना रिश्तें किसी उलझे धागे में उलझ जाते है /’
राजेश’अरमान’
‘ उलझे हुए धागे भी सुलझाने से सुलझ जाते है
उलझे रिश्तें सुलझाने से और उलझ जाते है /
रिश्तों की नाज़ुकी को क़द्र की पनाह दे दो
वरना रिश्तें किसी उलझे धागे में उलझ जाते है /’
राजेश’अरमान’
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Good
वाह बहुत सुंदर रचना