*एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर*
*एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर*
क्या नही तुमने किया
क्या नही हमने कीया
कंबरे मे रेहके बंद सबने
नजाने काटे कितने पेहेर
एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर
सेवको के लिये ताली बजाई
गरिबो के लिये बीछाई चटाई
सात बजे जब हुई अंधेर
जलाने मे दिये, हुइ नही देर
एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर
कपाट भव्य मंदिर के बंद है
गिरीजाघर भी सुन्न पडे है
काहेकी अयोध्या और काहेका अजमेर
एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर
समाचार ये आम है
नाकाम हर सरकार है
बच्चलन होगई समाजनीती
बढ रहा एक दुजेसे बैर
एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर
अछूत कर दिया इंसान को
मौत भी ना जोडे अब समाज को
बस्तीयो मे है अब अजिब सन्नाटा
अश्को मे है वृद्धी,हसी का पुरा घाटा
असमंजस मे हू ,कब खत्म होगी ये सेहेर
एक अनदेखे जंतू ने हैं किया सबको ढेर
ए मेरे मलिक ,ए मेरे आका
बेगैरत इस आपदा मे
भरोसे का कोई तो चिराग दिखा
मार कर मेरे अपनो को
तन के बैठा है ये बब्बर शेर
एक अनदेखे जंतू ने हैं किया सबको ढेर
अरे छुपे रुस्तम जरा सामने तो आ
मर्द बन के अपना सीना तो दिखा
मिल बैठेंगे जब जंग-ए- मैदान मे
नंगी होगी दो धारी समशेर
कर दुंगा नेस्तनाभूत तुझे, और
आकर रहेगी एक पावन सवेर
आकर रहेगी एक पावन सवेर
अतिसुंदर भाव
समसायिक यथार्थ चित्रण। सुन्दर प्रस्तुति
सुंदर
यथार्थपरक