एक नहीं सी जान पर क्यों पहरे हजार रखते हैं

एक नहीं सी जान पर क्यों पहरे हजार रखते हैं,

पिंजरे में क्यों हम उसका सारा सामन रखते हैं,

छिपाकर क्यों घूमते हैं चेहरे पर चेहरे लगाये,

क्यों आईने सी साफ नहीं हम अपनी पहचान रखते हैं,

बेटियों के दबाकर जो नाम गुमनाम रखते हैं,

घूमते हैं खुले आम पर न अपना कोई मुकाम रखते हैं,

लूट लेते हैं सहज ही सर से दुपट्टा किसी पतंग सा,

भला कैसे जान कर भी लोग कानून को अनजान रखते हैं,

झूठी है ज्ञान की बातें सारी जो सरेआम होती हैं अक्सर,

क्या सच ये नहीं के बेटियों पर हम आज भी कमान रखते हैं।।

– राही (अंजाना)

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close