कदमो की आहट

लाखों की भीड़ में भी तेरे कदमों की आवाज़ पहचान लेता हूँ,

मैं तेरी खामोश आँखों में छुपा हर दर्द पहचान लेता हूँ,

यूँ तो भटक भी जाऊ किसी मोड़ मगर,

मैं बन्द आखो में भी तेरा घर पहचान लेता हूँ॥

राही (अंजाना)

Related Articles

जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)

वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close