कभी कभी, तुम राहें भूल कर…! (गीत )
कभी कभी, तुम राहें भूल कर……! (गीत )
कभी कभी, तुम राहें भूल कर,
मेरी गलियों मे आया करो….
कभी कभी तुम ख़ुद को भूल कर,
ज़रा नजरें मिलाया करो…………!
ख़ुद में इतने खोये हो,
न तुझको कुछ ख़बर,
काम के सिवा,
न तुझको आता कुछ नज़र,
कभी कभी, सारे काम भूल कर,
ज़रा दुनिया को देखा करो…..
कभी कभी, बेवजह ही सही,
दुनिया को निहारा करो……
कभी कभी, तुम राहें भूल कर,
मेरी गलियों मे आया करो……..!
दिन ये जिंदगी के,
यूं ही बीत जायेंगे,
बीत जो गये,
कभी वो फिर न आयेंगे,
कभी कभी, तनहाइयों मे तुम,
ज़रा इसकी भी सोचा करो…..
कभी कभी, तनहाइयों मे तुम,
ज़रा मेरी भी सोचा करो….
कभी कभी, तुम राहें भूल कर,
मेरी गलियों मे आया करो….!
जिंदगी का अर्थ, प्यार,
और कुछ नहीं…
दिल किसी को देना ही,
इसीलिए सही…
कभी कभी, सारे बन्ध तोड़ कर,
मेरी बाँहों मे आया करो,
कभी कभी, तुम सब को भूल कर,
मेरी बाँहों मे आया करो….
कभी कभी, तुम राहें भूल कर,
मेरी गलियों मे आया करो……!
कभी कभी….!
” विश्व नन्द “
कभी कभी, तुम राहें भूल कर,
मेरी गलियों मे आया करो…. bahut khoob sir
Hardik dhanyvaad maananeey …!
कभी कभी, सारे बन्ध तोड़ कर,
मेरी बाँहों मे आया करो,
कभी कभी, तुम सब को भूल कर,
मेरी बाँहों मे आया करो…. …………… Kmaaal likha hai saheb…. Kya pukaar hai…. pathar bhee pighal jayee
Thank you so very much indeed for the encouraging lovely comment …!
वाह बहुत सुंदर रचना