कर्म-पथ

कर्म–पथ
कर्म–पथ पर चलना है, कोई दुरमति राह अपनानी नहीं
मिलेगी उलझी डगर यहां, इसमें कभी घभ्ह्रना नहीं
बड़ते हुए कठिन राहो पर, भूले से कभी उक्ताना नहीं
मंज़िल अपनी पाए बिना, मन से कभी सुस्ताना नहीं
लडते हुए घोर–घटाऔ से, सर को कभी झुकाना नहीं
जीवन आगे बढ़ने का नाम सही, इस पल को कभी गँवाना नहीं
हो जाये घायल यह देह तो भी, इरादो को कभी डग्म्गाना नहीं
कर्म–पथ पर चलते हुए, मुझे अपनी राह बनानी है
थकना मेरी नियती नहीं, आगे बढ़ना मेरी कहानी है
मुकाबला नहीं दूसरों से, ख़ुद को ख़ुद से आज़्माना है
नई मंज़िलों की चाह जगाते हुए, आगे बढ़ते ही जाना है
चाहे कोई साथ ना दे, ख़ुद पे भरोसा जताना है
लाखो आएँ बाधाएँ मगर, हटा उनको मंज़िलों को पाना है
जीवन की माटी को अपना लहू पिला, फूलों को इसमे खिलाना है
…….. यूई
Inspiring poetry…
awesomeness can’t go beyond it