Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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चिठ्ठी और मोबाइल
आज एक नयी धुन लगी मेरे मोबाइल को बोला आज याद आ रही है चिट्ठी अम्मा की मिलने की जिद पकड कर के निकला पडा…
मोबाइल मोह
कुछ दिल,कुछ धड़कन बन गया है,ना देखू एक पल तो मन बेचैन हो जाता है। कैसे एक मशीन जीवन का सार बन गई है,जैसे कोई…
मैं हूँ नीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर जब मैं निकली श्री शिव की…
पूछा करते जब
बचपन में पूछा करते जब भी दादी से दादी साड़ी श्र्वेत क्यों सर पर काले केश नहीं क्यों दादी कहतीं ‘ रंग गए सब दादा…
*इंटरनेट बंद हो जाए तो*…
सोचो कुछ दिन के लिए इंटरनेट बंद हो जाए तो.. क्या करेंगे हम क्या करोगे तुम, कविता प्रकाशित नहीं कर पाएंगे सावन पर हम घर…
Waah
Aabhar Apka