बलिदान
लाल लाल है रक्त उनका लाल लाल मैदान है याद रखना देशवासी जिसने दिया बलिदान है स्वार्थ नहीं था कुछ इनका ना ही कुछ अरमान…
लाल लाल है रक्त उनका लाल लाल मैदान है याद रखना देशवासी जिसने दिया बलिदान है स्वार्थ नहीं था कुछ इनका ना ही कुछ अरमान…
मत डरो विपदाओं से समझो प्रभु का वास है विपत्ति में भी दिया है देखो प्रगति का पावन राज है
बरस रहा है पतझड़ हम पर टूट रहे हैं पल्लव आजाओ अब शीघ्र श्याम बनकर तुम बहार नव
ये सांसारिक सुख मैं क्या रखा है एक नज़र सेवा करके देखो
तू देश का अनमोल रतन है बचा के रख इसे ये तेरा वतन है
जब जब पड़ा धरा पर , दानवों का भार तब तब आ गए तुम, लेकर ये अवतार मिटा दिया भू से, तुमने अनाचार
त्याग है एक सम्मान रहे हमेशा इसका मान
वो मनुज ही सफल है जिसने जीवन में सेवा सुख दिया है
जीवन एक परीक्षा है जिसमे सेवा व धैर्य की साधना करनी होगी
देश हमारा फले फूले सजा रहे ये संसार वक़्त है अभी बचा लो इसे खो जाये ये कहीं
घिरी हैं प्रकृति में, आनंद की घटाएं , हृदयस्पर्शी हैं, यहाँ की हवाएं, जी करता है , इन्ही में समां जाएं
गगनचुम्बी चोटियां , ये नीला अम्बर है, हिमालय नभ मिल हुए, खेत श्याम रंग है, हिमालय का सौंदर्य , अति अनुपम है
ईश्वर ने किया प्रकृति का श्रृंगार उसने दिया हमें ये अनमोल उपहार -विनीता श्रीवास्तव(नीरजा नीर)-
ऐ मनुज जिस दिवस , मनुजतत्व पाओगे स्वयं को पा लोगे , जग को अपनत्व दे जाओगे
आधुनिक है ये दुनिया खो न जाना तू इसमें माता पिता एक मोती हैं खो न देना एक पल में
जाग नर कीमती है तेरा, छन छन तेरा चल पड़ा सतपथ पर अब, रुकना नहीं है काम तेरा
विलक्षण हैं उसके नियम, नहीं पता नीति उसकी क्या है आये हैं हम कहाँ से, जाना हमें कहाँ है
मानव तू आया है जिस हेतु जग में बांध ले तू प्रेम दया का,सेतु जग में
मृत्युपथ पर जा रहा, वर्षा दो अमियासुधा रख कर निज नरेतित्व में , माँ रक्षा करो रक्षा करो
मैं निरुत्साहित हूँ, उत्साह बनकर आओ मैं असमर्थ, समर्थ बनकर आओ
वो है तेरे साथ ओ बन्दे, फिर किसकी फ़िक्र है जनता है वो तुझे उसपे सबका ज़िक्र है
हो अटल तेरा लक्ष्य की कभी न डगमगा सके
सुलगती हुई राहों में ,मेधवान बरसा करो प्रनतपालिनी माता तुम, रक्षा करो रक्षा करो
प्यार का मोह है इस दुनिया में अर्थ न कोई जनता माता पिता को छोड़ दिया तूने, मोह के पीछे भागता
आधुनिक है ये दुनिया खो न जाना तू इसमें माता पिता एक मोती हैं खो न देना एक पल में
पतितों का उत्थान हो माँ , सत्मार्ग दिखा, देकर सद्बुद्धि माँ , सच्चाई की रीत सीखा
गरीब भूका सो रहा, अमीर भी है रो रहा तो फिर सच्चा सुख कहाँ वो है हरी चरणों में
मैं अज्ञानी आत्मा हूँ, मुझको लख्या देदो एक सहारा है तुम्हारा एक बार दरस देदो
कर दे परिवर्तन, ऐ तांडव निरतन न हो अब क्रांति, शांति शांति बस शांति
देखो निर्मित हो रही हैं अवगुणो की ये सुरंग संभल जा ऐ मानव यही है वक़्त
देखो निर्मित हो रही है, अवगुणो की ये सुरंग वैभव में मैं रम गया, माया का छह है रंग
संग्राम मय जीवन में आएं बहुत विपदाएं परोपकर के लिए हो मेरी हर एक कल्पनाएं
निराधा इस जीवन को, आज तुम आधा दे दो इस हृदय के मरुपथ को, आज शीतल धरा दे दो
एक भरोसा तेरा है, भूल न जाना सांवरिया देर करो न तुम हरी ये जीवन अकेला है
साथ जो मेरे तुम हो हरी, तो कांटें भी फूल बनें
परोपकार के लिए हो, अब मेरी कल्पनाएं व्यर्थ ही भटक रहे, चरणों में अब दो विश्राम
त्रिलोक का अलोक जो, तुम वो महादीप हो संसार के सागर में, तुम ही एक सीप हो
ऐ हिमालय ऐ धरा , यूहीं मुस्कुराते रहें न हो क्रंदन स्वर, सभी उर हर्षाते रहें बस छह इतनी , देशहित शहीद होते रहें
ऐ हिमालय ऐ धरा , यूहीं मुस्कुराते रहें न हो क्रंदन स्वर, सभी उर हर्षाते रहें बस छह इतनी , देशहित शहीद होते रहें
आँधियों से लड़ने में, मैं तो रहा असमर्थ लक्ष्य मिला नहीं मुझे, भटक रहा हूँ व्यर्थ
हे समर्थ संग चलो, पथ में तुम न छोडो बनकर डीप चलो, तिमिर में न छोडो
अब तो अलोक दो , मनुजता दुखित हो रही मदमोहमाया से मेरी माँ, रक्षा करो, रक्षा करो
माटी की ये जीर्ण काया, उस पर ग्रसित मोह माया
अब तो अलोक दो , मनुजता दुखित हो रही मदमोहमाया से मेरी माँ, रक्षा करो, रक्षा करो
पूर्ण है विश्वास मुझे, इस दिवस तुम आओगे
पथ दिखाके,लक्ष्य दिखती’ है पथ प्रदर्शक माँ -विनीता श्रीवास्तव(नीरजा नीर)-
काँटों से भरे हुए है, जीवन के ये रस्ते, घाव मिलते पग पग पर लक्ष्य से हैं भागते -विनीता श्रीवास्तव(नीरजा नीर)-
सांझ दिवस और रैन में, बीएस तुमको ही पुकारा है सृष्टि के कण कण में, तुमको ही पुकारा है -विनीता श्रीवास्तव(नीरजा नीर)-
सत्य और आदर्श से, कालिमा चीर दो बाद चलो वीर सपूत, धरती के तुम वीर हो -विनीता श्रीवास्तव(नीरजा नीर)-
लाख मिले जो तुम्हे प्रलोभन, हो स्थिर मन,स्थिर मति तेरी
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