कितने भी तुम शहर भटक लो

कितने भी तुम शहर भटक लो
घर उसका ही सबसे प्यारा है
कितने भी तुम दर खड़क लो
दर उसका ही सबसे न्यारा है

….. यूई

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

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