किस्मत की पहेलियाँ
खुली हुई हथेलियाँ,मानो,
किस्मत की पहेलियाँ l
लकीरों का ताना बाना,
ना जाना, ना पहचाना,
जुडी हुई, ना जाने क्यूँ !
कैसे मेरे नसीब से यूँ ,
मकड़जाल सी ये रेखाएं ,
ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ,
मानों मेरी किस्मत को नचाती,
कठपुतली की भांति,
कहीं कटी राह,तो कहीं बाधा है,
कुछ भी ना पूरा,सब आधा है,
इन लकीरों में गुंथी हैं मेरी चाहते,
कुछ ख्वाहिशें और कुछ हसरतें,
एक आङी-टेढ़ी तस्वीर बनाती है,
जो रह रह मुझे डराती है,
मेरे सपनों को परे ठेलती,
खुशियों को पीछे धकेलती,
जाले में फंसी इक प्राण सी,
ज़िदा,तङपती,निष्प्राण सी,
निकलने की कैसे कोशिश करूँ,
किस ओर चलूँ,किस ओर दौङूँ,
इनमें मैं फंसती जा रही,
इन्हीं में उलझती ही जा रही,
कोई तो बताये उपाय निकलने का,
इनके मनसूबों से बचने का,
देखो कहाँ-कहाँ ये ले जा रहीं,
अपनी ही मरज़ी करे जा रहीं
ना जाने,किस ओर, आहिस्ते से,
अनजाने से रास्ते से,
चुपके-चुपके,ये लकीरें,
बिना बताये , धीरे धीरे।
खुली हुई ये मेरी हथेलियाँ,मानो,
किस्मत की अनसुलझी पहेलियाँ ।।
-मधुमिता
nice one 🙂
शुक्रिया श्रीधर
Bahut Khob
आभार
bahut sundar 🙂
धन्यवाद