कौन जाने
बारहा अब ये हक़ीक़त कौन जाने,
आँख भी करती बग़ावत कौन जाने।
मैं फ़िदा होता रुख़सार पे बस,
इश्क़ है या है इबादत कौन जाने।
जान देना था लुटा आये सनम पर,
इसके भी होते मुहूरत कौन जाने।
मौत की मेरी मुझे परवाह कब है,
जान मेरी हो सलामत कौन जाने।
गेसुओं की छाँव में होगी बसर फ़िर,
ज़ुल्फ़ उनके दें इजाज़त कौन जाने।
रात को उठ बैठ जाता हूँ अचानक,
नींद में भी अब शरारत कौन जाने।
जिस क़दर दुश्वारियाँ हैं आज कल ये,
छोड़ दे काफ़िर मुहब्बत कौन जाने।
#काफ़िर (11/06/2016)
Nice lines …
thnQ so much dear
waah
thnQ Subhangi Ma’am
सुन्दर
thnQ Ritu Ma’am
wahhh saahab kya khoobsurt matlaa liya hai laajwab
बारहा अब ये हक़ीक़त कौन जाने,
आँख भी करती बग़ावत कौन जाने।
kya kahne khoobsurt aankh bhi karti hai bagaawat koun jaane
रात को उठ बैठ जाता हूँ अचानक,
नींद में भी अब शरारत कौन जाने। lajwab again behd khoobsurt bhai
दिली शुक्रिया जनाब पूरब जी शुक्रगुजार हूँ आपकी इसकी मोहब्बत का