क्या ऐसा भी सोच था
क्या कभी ये सोचा था तुमने
ऐसा वक़्त भी आएगा
घर की चारदीवारी के भीतर
जीवन बिताना पड़ जायेगा
न ही मिलना होगा किसी से
न ही घूमना होगा
अपनों से मिलने को एक दिन
इतना तरसना होगा
मिलेंगी छुट्टी गर्मियों की फिर भी
नानी घर जाना न होगा
घर मे बैठे बैठे ही हर दिन
ऐसे ही बिताना होगा।।
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