ख़त
यादों की गलियाँ सजी हैं,
कुछ झालरें,पुराने दिनों की लगीं हैं,
कुछ रंगी से दिन हैं बिछे,
कुछ रेशमी रातों के पीछे।
मेरी खिङकी के नीचे तेरा खङे रहना ,
चुपके से आकर,मेरी आँखें,अपनी हथेली से मीचना,
बेसब्री से तेरा करना,मेरा इंतज़ार,
क्यों याद आ जाता है बारबार ।
मुस्कुराकर मुझे फूलों का गुच्छा थमाना,
झिझकते हुये, घबराते हुये,मेरा कबूल करना,
ना-ना करते भी,मुहब्बत को अपनाना
और उसकी गिरफ़्त में बिल्कुल खो जाना।
छुट्टियों में हर दिन,दूजे को ख़त लिखना,
जुदा होकर भी,तुझे करीब महसूस करना,
जुदाई के बाद,एक एक ख़त को पढ़ना,
दिल ही दिल में दूसरे की तङप को समझना।
एक एक ख़त को संभाल कर रखा है मैंने,
संजो रखी है हर वो खुशी जो दी है तूने,
हर हर्फ जो लिखे तूने, एक एक मोती है,
हर खुशी एक गहना,जो तुझ संग बटोरी हैं।
आज ना वो तू ही है,ना ही वह खुशियाँ रहीं,
हर चीज़ है आज,मानों बदली बदली,
रह गयीं हैं बस यादें अब
मेरे पास और वो तेरे ख़त सब।
हर एक ख़त तेरी मौजूदगी का कराती है अहसास,
हर एक लफ्ज़,आज भी मंडराता मेरे आसपास,
ज़िन्दा हूँ मैं क्योंकि ये ख़त हैं,
यही आज तेरी-मेरी हक़ीकत हैं ।
किताबों के पन्नों के बीच,
अब भी रही हूँ यादों को सींच,
तेरे ख़तों की मटमैली सलवटों पर,
अपने इश्क के वर्क चढ़ाकर,उन्हें दिल से संवारकर।
-मधुमिता
bahut sundar
शुक्रिया सिमरन जी
Very Nice Ji
धन्यवाद देव कुमार जी