ख्वाबों की फस्लें

एक पुरानी गज़ल-

 

**ख्वाबों की फसलें आज भी मैं बोया करता हूं::गज़ल**

 

 

हक़ीक़त जान ले कि रात भर मैं रोया करता हूं,

बहुत हैं दाग दामन में जिन्हें मैं धोया करता हूं l

 

 

यक़ीनन बांझ हैं दिल की जमीं मैं मान लेता हूं,

मगर ख्वाबों की फसलें आज भी मैं बोया करता हूं l

 

 

मेरा अरसा गुज़र गया तेरी यादों की चौखट पर,

ना जाने क्यूं तेरी यादों में ऐसे खोया करता हूं l

 

 

उगा करती है तेरी याद इन पलकों के गोशों में,

जिसे मैं आंसुओं से सींचता,संजोया करता हूं l

 

 

एक मुद्दत से कई ख्वाब मेरी चौखट पे बैठे हैं,

मेरी आंखें बता देंगी मैं कितना सोया करता हूं l

 

 

ये बात सच है कि मैं लोगों से तेरा ज़िक्र नहीं करता,

मगर छुप-छुप के तुझे गज़लों में पिरोया करता हूं ll

 

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-Er Anand Sagar Pandey

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