ख्वाहिश

समझदार हो गर, तो फिर खुद ही समझो।

बताने से समझे तो क्या फायदा है॥

जो हो ख़ैरियतमंद सच्चे हमारे, तो हालत हमारी ख़ुद ही देख जाओ।

जो ख़ुद जान पाए न हालत हमारी, दिखाने से समझे तो क्या फायदा है॥

मुहब्बत है क्या जो समझना हो तुमको, फ़ुर्सत से महफ़िल में आना हमारी।

दीवानों से समझो समझ जाओगे सब, ज़माने से समझे तो क्या फायदा है॥

चाहत अगर है तो चाहत से समझो,सताने से समझे तो कया फायदा है।

इस दर्द को दिल लगा कर के समझो, दिल दुखाने से समझे तो क्या फ़ायदा है..।

है कितनी मुहब्बत इन आँखों में देखो, बताने से समझे तो क्या फायदा है।

आशिक़ हैं हम इश्क़ हक़ है हमारा, बेशक़ ये हमने जताया नहीं है।

महबूब इस हक़ को खुद ही समझ ले, जताने से समझे तो क्या फ़ायदा है..।

आँखों में तेरा ही चेहरा बसा है,धड़कन तेरे नाम के गीत गाती।निगाहों की गर तुम सदाऐं न समझे,सुनाने से समझे तो क्या फायदा है।

ये अल्फाज़ मेरे, गवाह-ए-ग़जल हैं,

यकीनन ये पहुंचेंगे दिल तक तुम्हारे।

इन्हें पढ़कर, सुनकर, गुनगुनाकर समझ लो, बिन तराने के समझे तो क्या फ़ायदा है..॥

चलो मैं भी ऐसी ग़जल छेड़ता हूँ, हर इक शेर में आपका नाम होगा।अगर पढ़के समझे सलामत रहूँगा, मिटाने से समझे तो क्या फायदा है।

जो रखना है दिल में तो धड़कन सा रखो, बसाओ हमें अपनी हर साँस में यूँ।

मुझे याद रख कर हर पल समझना, भुलाने से समझे तो क्या फ़ायदा है..॥

मेरी ज़िंदगी में अहमियत तुम्हारी, है कितनी मैं तुमको ये कैसे बताऊँ।

मैं जिंदा हूँ उनकी ही चाहत के दम से, वो जान जाने से समझे तो क्या फायदा है।

अगर इश्क़ में दर्द पाया है तुमने, तो आँखों की शबनम न यूँ ही बहाना।

आशिक वो सच्चा जो आँसू समझले, मुस्कुराने से समझे तो क्या फ़ायदा है..॥

ये आँखे तरस के बरसी हैं बरसों, मगर दिल में मेरे नमीं की कमी है।नमीं से हरी हैं ये यादें तुम्हारी, सुखाने से समझे तो क्या फायदा है।

हमने तुम्हारे लिए ख़त लिखे जो, वो हर एक ख़त बिन पढ़े मत जलाना।

क्या क्या लिखा है ये पढ़कर समझना, जलाने से समझे तो क्या फ़ायदा है..॥

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शिवकेश द्विवेदी

सह रचयिता : आशीष पाण्डेय ‘अकेला’

 

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