गजल
मेरी पुरानी रचना…
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खाक पर बैठ कर
इतना भी इतराना क्या
दर्द चेहरे पे लिखा है
इसे छिपाना क्या…!
कब कहां किस तरह
से क्या होगा ,
जब चले जाना है जहाँ से
तो घबराना क्या !!
मै तो मतिहीन चेहरों को
पढा करता हुँ,
इस फरेब जमाने से
दिल लगाना क्या !!
उपाध्याय…
अतिउत्तम
Good