गीत कहूँ कैसे अब मैं.
गीत लिखूँ कैसे अब मैं, गीत कहूँ कैसे अब मैं.
सब शब्द तुम्हारे प्रेमी है,हर कविता तेरी दासी है,
हर वाक्य तुम्हारा वर्णन है, हर हर्फ़ तेरा अभिलाषी है,
फिर इन दीवाने लोगो को अब कहु, गढ़ूं कैसे अब मैं,
गीत लिखूँ कैसे अब मैं, गीत कहूँ कैसे अब मैं.
जो सृजन तुम्हारा दीवाना ,है दूर बहुत जाता मुझसे,
उत्पत्ति मुग्ध है अब तुम पर , है नाता तोड़ चुकी मुझसे ,
फिर इन परदेशी लोगो को , सुनूँ , कहूँ कैसे अब मैं.
गीत लिखूँ कैसे अब मैं, गीत कहूँ कैसे अब मैं.
जिन कल्पित भावो से नूतन, नव प्रेम कथा मैं गढ़ता था,
जिन अश्रुधराओं से प्रेरित हो, ग़ज़ल मैं लिखता था,
वो भाव गए सब तेरे संग, कहो , लिखूँ कैसे अब मैं..
गीत लिखूँ कैसे अब मैं, गीत कहूँ कैसे अब मैं.
…atr
बहुत बढ़िया साहब,,, प्रणाम
bahut bahut dhanyavad.. aabhar..
Good