गुनहगार हो गया
सच बोलकर जहाँ में गुनहगार हो गया,
लोगों से दूर आज मैं लाचार हो गया।
जो चापलूस थे सिपेसालार बन गए,
मोहताज़ इक अनाज़ से ख़ुद्दार हो गया।
इब्ने अदम ने लाख किए कोशिशें मगर,
इन्सान उसके भीतर गद्दार हो गया।
जाने कहाँ से हुस्न मिला ये तुम्हें सनम,
तीरे नज़र तेरा ये दिले पार हो गया।
हर कोई देखता मुझे शक़ की निगाह से,
हर लफ़्ज़ मेरा जैसे क़ि तलवार हो गया।
कर करके मिन्नतें तुझे मग़रूर कर दिया,
जो इस क़दर ये जीना दुश्वार हो गया।
देती रही सलाह ये दुनिया मुझे मग़र,
था ये जुनूं सवार मुझे प्यार हो गया।
हालात यूं हुए क़ि कहीं का नहीं रहा,
इक दर्द ज़िन्दगी में कई बार हो गया।
ऐसे ही कह दिया क़ि हसीं तुमसे कौन है,
फ़िर सुर्ख़ लब हुआ हँसी रुख़सार हो गया।
काफ़िर बदल नहीं सके वो ख़ाक हो गए,
कैसा यहाँ रिवाज़ मेरे यार हो गया।
Behtareen …
शुक्रिया भुवन जी