घर और खँडहर
घर और खँडहर
ईटों और रिश्तों
मैँ गुंध कर
मकान पथरों का
हो जाता घर
ज्यों बालू , सीमेंट और पानी
जोड़ें ईट से ईट
त्यों भरोसा, जज़्बात और प्यार
जोड़ें रिश्तों में मीत
चूल्हे में भखती ईटें
माँ की याद दिलाती है
जो ख़ुद के तन पे आग जला
सबकी भूख मिटाती है
नींव में दफन ईटें
दादा-दादी की याद दिलाती है
ख़ुद पे सारा बोझ लदा
घर की मंजिलों को बनाती हैं
छत में लगी यह ईटें
बाप की याद दिलाती हैं
ख़ुद पे सारी गर्मी खा
घर को ठंडा रखती हैं
दीवारों में चिनी यह ईटें
भाभी की याद दिलाती हैं
जो नींव को छत से जोड़
घर की इज़्ज़त बचाती है
आँगन में बिछी यह ईटें
भाई-बहनो की याद दिलाती हैं
कदमों के थपेड़ों को सह्ती
गिरने पे चोट नहीँ लगाती है
खिड़कियों को सम्भालती यह ईटें
गुरूओं की याद दिलाती हैं
रोशनी की किरणें अन्दर ला
अंधेरों को दूर् भगाती हैं
सीड़ीयों में लगी यह ईटें
यारों की याद दिलाती हैं
एक एक कदम साथ निभाते
ऊँचाइयों पे ले जाते हैं
खँडहर बने हर घर को देख्
यूई को खयाल यहि आता है
यहाँ रिशते चरमराए होंगे
याँ भरोसे डगमगाए होंगे
नींव बोझ सह ना पाई होगी
याँ गर्मी में छत पिघलायी होगी
दीवारें कमजोर बन आयी होंगी
याँ खिड़कियाँ बंद रह गई होंगी
कुछ ईटों कुछ रिश्तों
के चरमराते ही
हर बसा बसाया घर
खँडहर हो जाता है
………. यूई
satyavachan sahab !!