घर
कचरे की गठरी लेकर मुझको चलना पड़ता है,
हर कदम पर मुझको बहुत सम्भलना पड़ता है,
पैरों पर चुभते कंकड़ भी मुझको रोक नहीं पाते,
जब रोटी की खातिर घर से मुझको निकलना पड़ता है,
जब माँ और बाप का मेरे कोई बस नहीं चलता,
तब खाली हाथ सड़कों पर मुझको भटकना पड़ता है।।
राही (अंजाना)
Responses