चौराहा
चौराहा
बीच चार राहों के , वोह मुकाम ,
रुक कर जहां, एक राह चुनता इंसान .
ऐसे कितने चौराहों से, गुजरती जिंदगी़ ,
चुनते हुए राहें, लिखती दास्ता अपनी .
कितने चौराहों पे, ख़ुद छोड़ दी जो राहें ,
उन राहों संग, छूट गई कुछ निगाहें .
वो राहें और निगाहें, वापस नही मिलतीं ,
गुज़रा हुआ ज़माना, सच में गुज़र गया .
जिंदगी का सफ़र, शतरंज सा मुखर ,
चाल चली जो ख़ुद ही, वापस नही मिलतीं .
हर नए चौराहे पर, चुननी है अपनी राहें ,
जब तक खेल-ए-ज़िन्दगी में, शै-ओ-मात नही मिलती .
कुछ और चौराहों से, गुजरना है बाकी ,
कुछ और राहों को, अपनाना है बाकी ,
कुछ और निगाहों को, खोना है बाकी ,
यूई मात से पहले, ख़ुद को पाना है बाकी.
…… यूई
Good
कुछ और चौराहों से, गुजरना है बाकी ,
कुछ और राहों को, अपनाना है बाकी ,
कुछ और निगाहों को, खोना है बाकी ,
यूई मात से पहले, ख़ुद को पाना है बाकी.
कमाल की पंक्तियाँ