छलिया

जल कुकड़े हो क्या!
गुम हो जाते हो भाप से।
या सूखी धरती
जिसे तलाश है बरखा की।
या फिर भवरे हो,।
जिसे फूल फूल मंडराना पसंद है
पर जो भी हो
हो तुम छलिया, जिसे पसंद है घोंसला अपना ही।
निमिषा सिंघल

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close