आहुति
आहुति ——– अम्मा! तुमसे कहनी एक बात.. कैसे चलीं तुम? बाबूजी से दो कदम पीछे… या चलीं साथ। कैसे रख पाती थीं तुम बाबूजी को…
आहुति ——– अम्मा! तुमसे कहनी एक बात.. कैसे चलीं तुम? बाबूजी से दो कदम पीछे… या चलीं साथ। कैसे रख पाती थीं तुम बाबूजी को…
महारानी ———– समस्त आकांक्षाओं का वृहद आकाश.. और पतंग सी वह। उड़ती ..खिचती.. डोर से बँधी ऊँचा उड़ने का माद्दा रखती..वह। इंद्रधनुषी रंगो से सजे..…
मजदूर ——- मुट्ठी में बंद उष्णता, सपने, एहसास लिए, खुली आँखों से देखता है कोई ….. क्षितिज के उस पार। बंद आँखों से रचता है…
भर लो आगोश में, आओ कि सहारा दे दो, इश्क है कि नहीं थोड़ा सा इशारा दे दो। 1.हम भरम में रहे कि इश्क है…
तुम्हारी हँसी तुम्हारा रुदन, तुम्हारी स्मृतियाँ संँजो रखी हैं कीमती दस्तावेजों की तरह कागजों पर मैनें। तुम्हारी आंँख से टपके आँसू ..मोती बन स्वर्णाक्षर से…
कोकिला ———– कानों में मिश्री सी घोले, काली ‘कोकिला’ मीठा बोले। रूप रंग लुभाते हैं…. पर गुणों के अभाव में तिरस्कार ही पाते हैं। गुण…
तुम्हें भारी पड़ेगा तैरना ऊपर सतह पर, रत्न मिलते नहीं भटकन वहां पर। रत्न मिलते हैं गहराइयों में, तुम्हे आना पड़ेगा, ह्रदयतल में उतरकर।
एक कवि का जाना ———————— एक कवि अपनी दूर दृष्टि और लेखनी से पूरे संसार का दुख सुख समेट बिखेर देता है सुंदरता से कागजों…
“जिंदगी एक किताब है, सारे हर्फ न पढ़ पाएगा दुख सुख है बदलाव है, बढ़ता चल.. वरना उलझ कर रह जायेगा।” निमिषा सिंघल
पूस की रात ————- कड़कड़ाती सर्दी,सिसकती सी रात ठिठुरन, सिहरन आरंपार। पूस की रात जो हुई बरसात कांप उठी सारी कायनात। ना जाने कब होगी…
हरसिंगार ———– रात भर महकता, संवरता करता इंतजार, तड़प कर बिखर जाता धरा पर …. होकर बेकरार। खिल जाती धरा, मुस्कुराकर कहती आओ केसरिया बालम…
जिंदगी ——— हर किसी को खुश रख सके… यह तो भगवान के भी बस की बात नहीं। किसी के लिए अच्छे हैं तो किसी के…
तृप्ति —— वाग्देवी सरस्वती लड़खड़ाती जब निकलती हैं पहली बार बोलते किसी बालक के स्वर से… तो रसिक की तरह निहाल हो जाते हैं हम…
अनर्गल पक्षियों की चहचहाहट हमें शोर महसूस होती है जिस ध्वनि को सुनना हमारा मन गंवाया न करें वे सभी शोर हैं
शरद ऋतु का आगाज़ —————————- लंबी हो चली रात , कोहरा और बरसात। ऐसे में तेरा साथ, रूमानी एहसास। गुलाबी होठों के खुलते ही गर्म…
थोड़ा सा कुछ —————— घर एक कारखाना, काम करते-करते.. थोड़ा सा कुछ रह ही जाता है। तन- मन से बढ़िया से बढ़िया करने के बाद,…
वह गुनगुनी धूप सी तेरी हंसी, मानो गुलाब की पंखुड़ियां एक साथ झड़ी। मधुर अधर सकुचाये से शरमाये से बेकरार दिल ये उड़ा जाए रे।…
एक झलक और मुस्कुराहट तुम्हारी, देती रहें खुशियां.. न हो युद्ध की तैयारी। धड़कनें राग बजाती रहें, अभी जिंदा है हम… यह जताती रहे। रौंनके…
लम्हें —– कुछ गहरे घाव से दुखते होंगे, कुछ गहरे तंज जो आज भी चुभते होंगे। कुछ वक्त के मरहम से भर चुके होंगे, कुछ…
पुनर्स्थापना ————- गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक और राजा राममोहन राय नहीं जानते होंगे की कुप्रथा पर रोक लगाने के बाद भी…. वे नहीं रोक…
सफलता ———– बुझ रहे हो दीयें सारे, ओट कर.. जलाए रखना। जल विहीन भूमि से भी, तुम…. निकाल लोगे जल.. विश्वास को बनाए रखना। अंधकार…
ऊर्जा स्रोत ————- प्रिय! विद्युत सी है वाणी.. चल पड़ती है तो कानों में घुल… रूपांतरित हो जाती है मेरी हंसी और क्रोध में अनायास।…
दस्तावेज ———– दबे पांव तृष्णायें घेर लेती है एकांत पा, विचारों की बंदिनी बन असहाय हो जाती है चेतना। अवचेतन मन घुमड़ने लगता है बादल…
जिंदगी प्रतिक्षण अंतिम पड़ाव की ओर कदम बढ़ाती है इस सच को हम भूलना चाहते हैं पर किसी न किसी की मौत हमें यह सच…
ज़ुबान तेज हो तो शूल सी चुभती है बहुत चुभन के दर्द से लोगों को बचाए रखिये। जिंदगी ठहरी है न ठहरेगी कभी, प्यार के…
ज्ञान का घेरा, मज़हब का अंधेरा। अतंर! शांति और युद्ध जितना। निमिषा
कवि की अकुलाहट बोल रही, बिन लिखे कलम दम तोड़ रही। रचनाएं हैं अनमोल सभी, सिक्कों से इनकी तोल नहीं। निमिषा
मौन रही गर कलम कवि की, दम उसका घुट जाएगा। चेहरे से जिंदा दिखता हो, अंदर,भीतर मर जायेगा। निमिषा
क्रूर व्यवहार अच्छे खासे इंसान को भी कहलवा देता है “जानवर कहीं का”। इंसान का जन्म है इंसान ही रहिए जानवर बनने की कोशिश न…
मृगमरिचिका मृगतृष्णा यह जीवन सारा तृष्णा में डूबा जाता है, तृष्णाग्रस्त हो खोया रहता है, हाथ नहीं कुछ आता है। मरुभूमि में उज्जवल जल सा……
महफिल ———- महफिल में हंसते चेहरे भी. … अक्सर बेचैन से रहते हैं, वह हंसते-हंसते जीते हैं आंसुओं को भीतर पीते हैं। महफिल में रौनक…
बाबुल —————- याद आए बाबुल जब-जब तेरी, आंख भर आए तब तब मेरी। मैं चिड़िया थी अंगना तेरे, चहका करती सांझ सवेरे। गोद में…
मधुमक्खियां —————- कालबेलिया नृत्यांगना सी रंगत…. छरहरी… बिजली सी फुर्तीली, योद्धा ….. डंक हथियार लिए… घुमंतू… चकरी सा नृत्य कर जब तेज स्वर में बजाती…
गूंगी लड़की ————— रात्रि के अंधकार में, नहा जाती वह दूधिया प्रकाश से। जब उसकी कहानी के पसंदीदा किरदार उसको घेरे खड़े होते। बेबाकी से…
किन्नर ——– व्यंगात्मक हंसी में भी प्रेम तलाशते, अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर यह संवेदनाओ से भरे हृदय अपनी दो जून की रोटी के लिए…
किन्नर ——– व्यंगात्मक हंसी में भी प्रेम तलाशते, अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर यह संवेदनाओ से भरे हृदय अपनी दो जून की रोटी के लिए…
तलवार जरूरी —————— मराठे, राजपूत, सिख सदा उसूलों पर ही चले थे। सीने पर तीर खाएं…. फिर भी… पीठ पीछे ना वार किए थे। अंग्रेज…
वायरस ——– वायरस हो क्या! जो लहू में संक्रमण की तरह फैलते ही जा रहे हो। या फिर परिमल जिस की सुगंध खींच लेती है…
दायरे ____ **** दायरे थे ही नहीं मानव की लालसा के! हर तरफ फैलाव था पैर पसारे। जीव सीमट रहे थे दायरो में…. लुप्त और…
यह समय फिर ना मिले —————————- “दौड़ भाग की जिंदगी सुकून छीन ले गई, हम दौड़ते ही रह गए जिंदगी पीछे रह गई।” वक्त फिर…
महामारी से मुक्ति प्रार्थना —————————— हे दुख भंजन दयानिधे कृपासिंधु . .. भव पार करें। करो कृपा हम दीनजनों पर, दूर करो सब कष्ट धरा…
मापदंड ———- कुंठित हृदय से उपजती विषाक्त बेल, लील जाती है कितनी ही हरी कोपले। उनको कुचलती कोपलों से निकली, दर्दनाक चीखों का शोर दब…
ग़ज़ल ——- दूरियां ,नज़दीकियां, खुशफहमियां तेरे साथ में, हम मिले ना थे कभी पर बह गए जज्बात में। 1. मौसमै अंदाज था कुछ खास था…
शिखर धरा, गगन, मृदुल पवन हिले तेरी एक हूंक से, जो तू चले बिना रुके मंजिलें दिखे तुझे। समुंद्र भी दे रास्ता जो तू कहे…
युवा पीढ़ी रचो इतिहास लिखो शौर्य की अद्भुत कहानी देश को भय मुक्त करो। भ्रष्टाचार, दुर्दभ्य दानवता के खिलाफ नए युग का सृजन करो। आओ…
उम्मीद की किरण जगमग आई है, आज फिर याद मुझे तेरी ओर लाई है। जमाने की तपिश, जिम्मेदारियों का बोझ.. सहते -सहते दबी राख सुगबुगाई…
सुनो! तुम सागर की तरह क्यों लगते हो? शब्दों में गहराई बहुत है मानसिक द्वंद छिपाने में चतुराई बहुत है। बाहर से एक शांत सतह…
एक एक चीज का गिन गिन कर हिसाब लेने वाली वो लड़ाकी बन जाती है ढाल अपने भाई की। मां और पापा ने भाई को…
आस्था के कमल ——————– प्रेम और विश्वास के दरिया में ही खिलते हैं आस्था के कमल। तुम खरे उतरना इस विश्वास पर ना मुरझा पाए…
मेरे जाने के बाद ——————– बिखेर दिया है खुद को इस कदर मैंने ….. कि …. मैं ना मिल पाऊं गर तुम्हे … तो ढूंढ…
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