जब भी वो आ जाती है

जिंदगी में उम्मीदें

जैसे दोबारा जाती है

इस कदर से

खुमारी उसकी

मुझपे छा जाती है।

 

यारो तुम्हें पता है

ऐसा कब होता है?

जब भी वो जाती है

जब भी वो जाती है।

 

वो किसीको कुछ भी

पता लगने नहीं देती

क्योंकि वो आंखों से नहीं

बल्कि पलकों के इशारों से

मुझे सब बता जाती है।

 

 

वो दिन देखे रात

उसकी चलती है बस

जब भी वो चाहती है

बस जाती है।

 

जब मुझे उम्मीद नहीं होती

तब भी वो जाती है

शायद जब तक़दीर होती है

बस तब वो जाती है।

 

 

आने से पहले तो

बेशक़ ख़बर हो उसकी

लेकिन जाने से पहले वो

मुझपे इनायत

बरसा जाती है।

 

 

 

 

 

वो तो चुपके से आकर

चुपके से चली जाती है

लेकिन मुझे चुपचाप से बेबाक

वो बना जाती है

 

सामने से मुझसे कईं बार

उसकी नजरें नहीं टकराती

और अपनी तरह मुझे भी

आँखमिचोली सिखा जाती है।

 

जिन उलझनों से डरता मैं

भागता फिरता हूँ

उनसे वो मुझे

रब की तरह छुड़ा जाती है।

 

गुस्सा होने तो वो

सिर्फ दिखावा करती है

थप्पड़ मारके मुझे

खुद रोकर

मुझे सता जाती है।

 

 

इतने दिनों से मेंने

बुना होता है

जो प्यार उसका

एक झटके में वो

सबके सामने

ला जाती है।

 

सोने से पहले अगर

याद भी करुँ किसी दिन

तो भी वो सपने में आकर

अपना वजूद

बता जाती है।

 

पूछती है मुझसे

तुमने क्यों बुलाया था मुझे

और खुद वो बिना बताये ही

मिलने जाती है।

 

मुझसे, खुदसे, सबसे……,

वो अनजान बनकर आती है

लेकिन हर बार मुझपे

वो अपना निशां

बना जाती है।

 

कितनी मददगार है वो

जिसकी खातिर हमेशा

तलबगार रहता हूँ मैं

कि वो नीँद से जगाकर मुझे

इतनी शायरी लिखा जाती है।

 

आपको तो उसकी बातें सुनके

उबासी आने लगी होगी

लेकिन मेरी तो वो

रातों की नींदें

उड़ा जाती है।

 

 

 

वैसे वो तो जाने

अपनी तराफ से क्या चाहती है

लेकिन मेरी कायनात तो बस

उसकी मुस्कान में समाती है।

 

हर एक फिज़ा का नज़ारा

कुछ अलग ही रंग में होता है

उसके प्यारे से चहरे पे

बेहद प्यारी मुस्कान

जब जाती है।

 

चुपचाप ही देख लेता हूँ मैं

कईं बार तो

उसका खिलता चहरा

और मुझसे

खुशगवार मौसम की हवा

टकरा जाती है।

 

 

 

एक दिन वो

दूसरो से बोलके

अपनी मोजूदगी

मुझपे आज़मा रही थी

वो मानेगी नहीं

लेकिन मुझे तो

उसके कदमों की भी

आवाज़ जाती ही।

 

क़लम की स्याही

और कागज के बरखे.., ये सब

तभी कुछ काम के होते हैं

जब भी वो

शायरी बनके जाती है।

                                                                         –   कुमार बन्टी

 

 

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