शायरी
ऐसा तपा के सुन्न किया है तेरी तड़प ने कि अब नहीं लगती मुझे गर्मी-सर्दी »
एक तू ही है जो नहीं है बाकि तो सब हैं लेकिन… तेरे न होने का वज़ूद भी सबके होने पे भारी है मुझे भी जैसे तुझे सोचते रहने की एक अज़ीब बीमारी है। नहीं कर सकता आंखे बंद क्योंकि तेरा ही अक्ष नज़र आना है उसके बाद तब तक जब तक मैं बेखबर न हो जाऊ खुद के होने की खबर से और अगर आंखे खुली रखूँ तो दुनिया की फ्रेम में एक बहुत गहरी कमी मुझे साफ नज़र आती है जो बहुत ही ज्यादा चुभती चली जाती है क्योंकि उस फ्रेम में... »
अपने ही सूरज की रोशनी में मोती–सा चमकता औस का कतरा है आज़ वो जो कल तक था अंधेरे में जी रहा। कितनो की आँखों का तारा है आज़ वो जो कल तक था अज़नबी बनकर जी रहा। दूसरो के कितने ही कटे जख्मों को है वो सी रहा लेकिन अपने ग़मों को अभी भी वो खुद ही है पी रहा। कितनी ही बार जमाने ने उसे गिराया लेकिन वो फिर–फिर उठकर जमाने को ही सँवारने की तैयारी में है जी रहा। अपने दीया होने का उसने कभी घमण्... »
क्या सिर्फ चेहरे पर बनी कुछ लकीरें तय करती हैं ख़ुशी ? या फिर किसीके पूछने पर ये कह देना “मैँ खु़श हूँ” इससे ख़ुशी का पता लग सकता है ? — KUMAR BUNTY »
दिन–रात लिखूँ हर बात लिखूँ दिल के राज़ लिखूँ मन के साज़ लिखूँ। अपने वो दिन बेनाम लिखूँ लेकिन नहीं हुआ बदनाम लिखूँ कितना बनकर रहा गुमनाम लिखूँ इतना कुछ पाने पर भी बनकर रहा मैं प्राणी आम लिखूँ। मन तो मेरा कहता है कि लगातार लिखूँ और दिल भी पुकारता है कि सबके सामने सरेआअम लिखूँ। कितनों ने दिया साथ और कितनों ने दिखाया खाली हाथ क्या वो भी लिखूँ। वक़्त केसे पड़ गया कम होते हुए भी मन में समु... »
कुछ खो गया है मेरा या फिर मैं खुद ही लुटा रहा हूँ जिंदगी कहीं चल तू ही बता दे जिंदगी आज़ नहीं तो कल किसी और मोड़ पे सही मुझे कोई जल्दी नहीं लेकिन तुम इतनी भी देर मत करना कि खो चुका हूँ मैं खुद को ही कहीं। —̵... »
कभी–कभी कागज पर खिंची लकीरों के बीच भी कोई तस्वीर इस कदर से जिंदा हो जाती है कि जिसकी होती है वो तस्वीर उससे मिले बगैर ही उससे मिलकर होने वाली बातें उस तस्वीर से हो जाती है। –कुमार बन्टी »
तुम्हारे होठों का सिर्फ मधु ही मुझे प्यारा नहीं बल्कि प्यारी लगती हैं वो कड़वी बातें भी जो तुम कहती हो क्योंकि वो होती हैं हमेशा ही मेरे भले की। – कुमार बन्टी »
Life is so cool Because how easily it makes us fool When it wants And we can’t denied to it Because we are actually so unaware about it Till even it passes through To me and also to you »
वक़्ता भी क्या बोले जब कोई उसे ध्यान से सुनने को तैयार नहीं। लेखक भी क्यों लिखे जब कोई कुछ दिल से पढ़ने को तैयार नहीं। गायक भी कैसे गाए जब कोई सुरों की कदर करने को तैयार नहीं। आशिक़ भी अपने दिल को क्यों खोले जब उसका प्यार उसे समझने को तैयार नहीं। दर्द में भी कोई क्यों चींखे जब कोई उसकी चींख सुनने को तैयार नहीं। गम में भी कोई कैसे रोए किसीके आगे जब कोई उसका गम समझने को ही तैयार नहीं। को... »
न जाने क्या–क्या चीजें लिखता रहता हूँ मैं वक़्त की इस महँगाई में खुद के ही हाथों खुद को बिकता रहता हूँ मैं सब से दूर होकर पता नहीं किसके करीब खुद को खींचता रहता हूँ मैं कईं बार तो इसी वज़ह से खुद पे ही झींकता रहता हूँ मैं लेकिन आखिर में चाहे हार जाऊँ या जीत जाऊँ फिर भी कुछ न कुछ सीखता रहता हूँ मैं। – कुमा... »
अधूरापन ये मेरा क्या पता मेरे भीतर कोई आग जला दे और फिर कभी मेरे भीतर कोई कामयाब सूरज़ उगा दे। –कुमार बन्टी »
कौन जानता है कि कौन मिलेगा कहां देखौं न मैं तो हूँ यहां और तुम हो न जाने कहां लेकिन तुम मिल रहे हो मुझसे पढ़कर मेरी लिखी जुबां। – कुमार बन्टी »
नहीं हारनी है हिम्मत जब तक ये साँस हैं क्योंकि मुझे उम्मीद की चाह से ज्यादा कोशिश की राह पे विश्वाश है। – कुमार बन्टी »
वर और वधू के लिए जितनी दौड़ दिख रही है उससे ज्यादा तो लड़कों में गर्लफ्रेंड और लड़कियों में बॉयफ्रेंड के लिए आजकल एक दौड़ सी लगी है। माँ–बाप से ज्यादा भाई तो है ही कौन पैसों के लिए पता नहीं क्यों लगी है लेकिन एक दौड़ सी लगी है। पत्नी व्यवहार–कुशल न हो तो भी चलेगा लेकिन अपने साथ वो लाई है दहेज़ कितना इस बात के लिए आज़ भी एक दौड़ सी लगी है। गुरु–शिष्य का रिश्ता जो सबसे महान हो... »
दिन में देखा सपना रात को देखा सपना रात का जब टूटा सपना दिन में जगा हुआ पाया लेकिन दिन का जब टूटा सपना रात में भी सो न पाया। – कुमार बन्टी »
दिन में देखा सपना रात को देखा सपना रात का जब टूटा सपना दिन में जगा हुआ पाया लेकिन रात का जब टूटा सपना दिन में भी सो न पाया। – कुमार बन्टी »
यूँ तो रिश्ते रोज़ ही बनते हैं इस जहां में कुछ टूट जाते हैं कुछ बिक भी जाते हैं लेकर बहाने तरह–तरह के लेकिन टिकते हैं रिश्ते वो ही जिन रिश्तों में दोनो पक्षों ने वफा के अलावा और कोई माँग कभी की ही नहीं। – कुमार बन्टी »
जिसको जरूरत होती है वही साथ चलता है बिन जरूरत वाला तो बस तनक़ीद करने को ही मिलता है। अपना मतलब न सोचे दूसरे की मदद करते वक़्त आज़ इस दुनियाँ में ऐसा इंसान कम मिलता है। जो दूर से दिखाती हैं निगाहें पास जाकर छानने पर वही मंजर हर बार कब मिलता है। बड़ी–बड़ी नावें पैदा करती है दरिया में बहुत भारी हलकम लेकिन अगर डूब जाएँ वें कभी तो उनका नामो–निशान कहां मिलता है। खुद–ब–खुद पा... »
भीड़ भरी इस तन्हाई में जीना एक अलग नज़रिए के साथ कितना जरुरी बन गया दिन–ब–दिन बदलता यहां हर मुकाम मुझे ये जाहिर कर गया। शोर भरे सन्नाटे में कैसे मैं ढ़ल गाया ये तो बस मैं ही जानता हूँ लेकिन खुद को खोने के डर में इस भीड़ भरी तन्हाई में जब से मैं खुद से मिल गया तब से मैं खुद को बड़ा खुशनसीब मानता हूँ। – कुमार बन्टी »
एक ही झटके में सबकुछ समझ जाओ तुम मेरा जीवन ऐसी कोई खुली किताब नहीं राह हासिल करने को गंदी नाली को स्वीकारले ऐसा ये कोई बेवकूफ आब नहीं। -कुमार बन्टी »
वज़न उठता नहीं तुमसे दो मण भी कहां गई शक्ति तुम्हारे यौवन की और कहां है अभिव्यक्ति तुम्हारे मन की। चलो ये वज़न तो तुम भारी कह सकते हो इससे इंकार भी कर दो तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन तुम तो वो वज़न भी उठाने को तैयार नहीं जो होता है देश के प्रति कुछ प्रण का और जो दायित्व है तुम्हारे इस युवानपन का। उन्होंने तो अपना बलिदान देकर तुम्हें ये भारत सोंपा लेकिन तुमने कितना योगदान देकर देश के बारे में ... »
मेरी उदासी भी मेरे लिए बन गई खूबसूरत ये किसीका कोई असर ही है खूबसूरत। लेकर बैठा रहता मैं जब अपनी रोनी सूरत उस वक़्त भी गढ़ी जा रही होती मेरे भीतर उसकी कोई नूरत। असल में तो मेरे लिये वो ही है सबसे ज्यादा खूबसूरत जिसके असर से मुझे दिख रहा है सब कुछ खूबसूरत। – कुमार बन्टी »
अकेले होने का मतलब हर बार बस उदास होना ही नहीं होता हो सकता था मैं भी बरबाद पास अगर मैं खुद के न होता। किसीकी कोई चोट ऐसी भी होती है जिसका एक निशाँ ही कईं चोटो से कम नहीं होता। कुछ गम सीख देने वाले भी होते हैं सिर्फ रूलाने खातिर ही हर गम नहीं होता। गम किसीके जाने का कईं बार इतना गहरा होता है कि वो आँसुओं के ख़त्म होने पर भी कम नहीं होता। लेकिन जिसने परम–प्रकाश पा लिया हो उसके लिए... »
कुछ पल बन जाते हैं सब कुछ। कुछ पल कह देते हैं खुद ही कुछ। कुछ पल छोड़ते नहीं संग में कुछ। कुछ पल जिनका मिलता नहीं किसीकी को भी कोई भी हल। कुछ पल यूँ ही जाते हैं ढ़ल। कुछ पल टिकते नहीं कुछ भी पल। कुछ पल रहते वहीं सदा आज़ और कल। कुछ पल खो जाते हैं कहीं हो जाते हैं गुम बनकर सबसे हसीं पल। कुछ पल रूलाते हैं बहुत जब याद आ जाएँ किसी पल। कुछ पल देते हैं सकून अगर मिल जाएँ कुछ ही पल। कुछ ... »