तुम आहिस्ता से पर्दे खोल देना
तुम आहिस्ता से पर्दे खोल देना
सुबह खिड़की के….
मैं बन के धूप चौखट से तुम्हारी
छन के आऊँगा…
जब पंछी चहचायेंगे तुम्हारे घर के आँगन मे…
जरा तुम गौर से सुनना
मेरी आवाज मिलेगी…
कभी जो सर्द सा झोंका
तेरे चेहरे से टकराये….
समझना मैं हवा मे था…
तुम्हे छू कर गुजर गया….
मैं साया तेरा बन कर…
तुम्हारे साथ रहा हूँ…
मैं उन गीतो मे होता हूँ…
जिन्हें तुम गुनगुनाती हो….
मैं हर जगह रहता हूँ…
बीता नही हूँ मैं
हर मंजर मे मिलूँगा
जो मुझको देख पाओ तुम
लवराज टोलिया
nice
nice poetry
वाह जी वाह
बहुत खूब
बहुत सुंदर पंक्तियां