देश गान
माँ तुम्हारे चरणों को
धोता है हिन्द सागर।
बनके किरीट सिर पे
हिमवान है उजागर।। माँ…..
गांवों में तू है बसती
खेतों में तू है हँसती
गंगा की निर्मल धारा
अमृत की है गागर।। माँ….
वीरों की तू है जननी
और वेदध्वनि है पवनी
हर लब पे “जन-गण”
कोयल भी ” वन्दे मातराम् ”
निश-दिन सुनाए गाकर।। माँ….
विनयचंद ‘बन वफादार
निज देश के तू खातिर।
तन -मन को करदे अर्पण
क्या है तुम्हारा आखिर?
माँ और मातृभूमि पर
सौ-सौ जनम न्योछावर।। माँ…
वाह, भाई जी देश भक्ति पर इतनी सुंदर कविता।आपकी लेखनी को प्रणाम।
शुक्रिया बहिन
सुन्दर प्रस्तुति
Thank you very much
सुन्दर
Thank you
बहुत ही सुन्दर देश भक्ति की कविता का सृजन हुआ है, वाह
धन्यवाद
Very nice
Thank you
सुन्दर अभिव्यक्ति ।
देश की महिमा का बखान, बहुत ही सुन्दर ।
किरीट,हिमवान, पवनी जैसे शब्दों का अद्भुत तालमेल ।
.अतिसुंदर हृदयक समीक्षा के लिए धन्यवाद