परदेश चला गया हमारा लाल
चला गया है परदेश हमारा लाल
पूँछ लेता है फोन पर कभी कभी हमारा हाल चाल
बेटा— बहुत बिजी हूँ माँ टाइम नहीं मिलता
कब आऊँगा वहाँ मुझे भी नहीं पता
कैसी हो माँ पापा का हाल है कैसा।
तुम्हारे गुजारे केलिए भेज रहा हूँ कुछ पैसा
कुछ और कहो वह भी भिजवा दूँगा
रहो मौज से मैं भी मौज से रह रहा।
पर याद तुम्हारी बहुत आती है
कोई माँ देख लेता हूँ तो आँख भर आती है।
पर हूँ मजबूर आ नहीं सकता
यहाँ जिम्मेदारियाँ बहुत हैं
मैं बहुत कामों में घिरा
और कहो माँ सब ठीक है।
बिजली,पानी,राशन,दवादारू की कोई दिक्कत तो नहीं है
घर की मरम्मत होनी थी क्या करवा ली है
अगले महीने ही तो दिवाली है।
माँ बोली —-क्या बोलू बस जी रहे हैं
रोटी खा लेतै हैं दिन कट रहे है
क्या होली क्या दिवाली क्या रविवार क्या सोमवार सब दिन एक से है।
हम दो जन में त्योहार कैसे है।
बस देखते रहते है फोन और दरवाजे को कि ये शायद चीर दे
हमारे चारों ओर फैले संनाटे को
और क्या कहूँ पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ जबाव दे चुकी हैं
शरीर अकड़ गया है जोड़ों में बहुत टीस उठती है
अलमारियों में बिलों के अंबार डले है।
कौन करे भुगतान कैसे हो भुगतना जाने कब के पड़े हैं।
भुगतान देर से होने पर पेनल्टी लग जाती है
पानी,दूरसंचार,गैस,बिजली जब तब कट जाती है ।
और घर–
घर का क्या कहै बह भी बूड़ा हो चला है
हमारी तरह तन्हां हो गया है।
दीवार छत सब उधड़ सी गयी हैं।
दरवाजे खिड़कियाँ कराह रही है।
बस हम एक दूसरे के हाल पर रो रहे हैं
वह(घर) हमें घूरता है हम उसे घूरते हैं
हमने भीे दिखाई थी कभी धौंस पैसे की
देकर एक्सट्रा पैसा काम करवा लेंगे किसी और से ही।
पर सबका आलम सरकार सा है।
लेकर पैसा मुकर जाते हैं
जल्द काम खत्म करने का आश्वासन देकर महीनों लगाते हैं
शिकायत करने पर आँखें दिखाते हैं
झुझलाते है नसों में बल देकर ताकत दिखाते हैं
हम हो गये हैं बूढ़े ये जताते हैं ।
बस पूँछ लेते हो हाल ये काफी नहीं है
और भेज देते हो पैसा ये जिम्मेदारी नहीं है
यहाँ भी रोटी कपड़ा और मकान है
सुविधाओं के अन्य सामान हैं ।
फिर क्या है ऐसा क्या है परदेश में
कि तुम भूल गये अपना घर देश
इधर माँ मौन थी
उधर बेटा मौन था
दोनों बुत बन गये कुछ देर सन्नाटा रहा
अपना अपना जबान दोनों के पास था
मगर कोई कुछ न कह सका
इतने में बेटा बोला
माँ फोन रखता हूँ कुछ काम आ पड़ा
समय मिलते ही जल्द ही पूँछ लूँगा हालचाल आपका
इस यरह से संवाद बंद हो गये
बड़ाने को आगे फिर से यही सिलसिले।
पारुल शर्मा
bahut hi khoob
हार्दिक धन्यवाद
bhut khoob
Awesome