पहरा
सोंच का समन्दर और भी गहरा होता गया,
मैं जितना लोगों से मिला उतना बहरा होता गया,
भूल गया उठना ख़्वाबों के घने अँधेरे से एक दिन,
मैं जब जागा तो दूर तलक रौशनी का पहरा होता गया,
अंजाने सफर पर मन्ज़िल की तलाश में निकला था जो ‘राही’,
आज सबसे अंजाना मगर जाना पहचाना उसका चेहरा होता गया।।
राही (अंजाना)
बहुत खुब
Thank you
Bahot sundar
Thank you
na jane kab kunch krna ho.
apna saman muktsar rkhiye..
Thank you
Osm
Thank you