पापा के दुलारी
बेफिक्र बचपन और जिन्दगी है न्यारी,
थोड़ी शरारत और साँवली सूरत है प्यारी।
मम्मी की गुड़िया और पापा की दुलारी,
रहती उनके दिल में बनकर राजकुमारी।
ख्वाहिशें हुई हैं पूरी चाहे जितनी हो गरीबी,
भूल से भी माँ बाप ने न जाहिर की मजबूरी।
जिन्दगी के बंजर रैम्प पर वह कैटवॉक करती,
यह नन्ही-सी मॉडल सबको है नि:शब्द करती।’
रचनाकार:-
अभिषेक शुक्ला ‘सीतापुर’
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PRAGYA SHUKLA - July 14, 2020, 1:41 pm
Good
Abhishek kumar - July 15, 2020, 11:44 pm
Thanks
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - July 14, 2020, 10:59 pm
Nice
Abhishek kumar - July 15, 2020, 11:44 pm
Thanks
Vasundra singh - July 15, 2020, 3:20 pm
nice
Abhishek kumar - July 15, 2020, 11:44 pm
Thanks
प्रतिमा चौधरी - September 26, 2020, 1:41 pm
Very nice