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पूरी रात भर उडगन

सोचता है मन
कि पूरी रात भर उडगन,
समय कैसे बिताते हैं
अपने घौंसलों मे रह।
न मोबाइल न टीवी है
न खाना बनाना है,
साँझ होते ही
दुबक कर बैठ जाना है।
जो पा लिया दिनभर
उसे ही खा लिया दिनभर,
आठ-दस घंटे
न खाना न पीना है।
बड़ी अद्भुत कहानी है
बड़ा विस्मय है मन मे यह
कि प्रकृति का कैसा
बनाया ताना-बाना है।

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