पूरी रात भर उडगन
सोचता है मन
कि पूरी रात भर उडगन,
समय कैसे बिताते हैं
अपने घौंसलों मे रह।
न मोबाइल न टीवी है
न खाना बनाना है,
साँझ होते ही
दुबक कर बैठ जाना है।
जो पा लिया दिनभर
उसे ही खा लिया दिनभर,
आठ-दस घंटे
न खाना न पीना है।
बड़ी अद्भुत कहानी है
बड़ा विस्मय है मन मे यह
कि प्रकृति का कैसा
बनाया ताना-बाना है।
पंछियों के बारे में इतनी गहराई से एक कवि मन ही विचार कर सकता है।
….. अद्भुत लेखन , विलक्षण प्रतिभा…
सैल्यूट सर, कलम को सलाम
इतनी बेहतरीन समीक्षा हेतु सादर अभिवादन, उत्साह वर्धन हेतु आभार।
इतना अद्भुत लेखन, वाह,
थैंक्स
बहुत बढ़िया
सादर धन्यवाद
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद
Very nice poem
Thank you
भूख दिया जो जीव को
अन्न भी देगा आप।
जिसकी रचना रात है
नींद भी देगा आप।।
एक भरोसा एक बल
एक आश विश्वास।
तुलसी ऐसे जीव का
करे राम प्रतिपाल।।
बहुत खूब सुंदर चित्रण अतिसुंदर रचना
आपने समीक्षा में इतनी सुंदर पंक्तियाँ प्रस्तुत की, आपका हृदय की अतल गहराईयों से धन्यवाद व्यक्त करता हूँ। यह स्नेह सदा रहे। सादर नमस्कार
बहुत सुंदर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद