फिर से मुहब्बत हो गयी
ना चाहते हुए भी फ़िर से हिमाक़त हो गई,
कल फ़िर उसे देखा,फ़िर से मुहब्बत हो गई l
वही वो झील सी आंखें,वही बादल से वो गेसू,
बलखाती कमर उसकी फ़िर से क़यामत हो गई l
कुछ इस अदा से वो मेरे आगे से गुजरी कि,
मेरी सांसों को उसकी ज़रूरत हो गई l
इरादा कर लिया था कि मैं उसको भूल जाऊंगा,
मगर वो सामने आई तो खुद से बगावत हो गई l
मैं क्या ज़रा सा उसकी याद में खो गया,
सारे शहर में चर्चा है मुझे पीने की आदत हो गई l
कल सुबह सोचा था कि अब मर जाऊं मैं “सागर”,
कल शाम उसे देखा तो फ़िर जीने की चाहत हो गई ll
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-Er.Anand Sagar Pandey
baut khoob
Thank you from the bottom of heart.