मजदूर की व्यथा

कोरोना नामक महामारी हमारे देश में है आई
इस महामारी ने पूरे प्रशासन में हड़कंप है मचाई।

सरकारों ने महामारी से निपटने के लिये कई तरकीब है अपनाई
पर सबसे सख्त तरकीब तालाबंदी नजर आई।

मध्यम वर्गीय और रईसों ने इस फैसले की खूब की बढ़ाई
पर अंतत: सबसे ज्यादा पिसे हमारे गरीब मजदूर भाई।

मध्यम वर्गीय और रईसों ने, तालाबंदी में घर में खूब बनाये व्यंजन और मिठाई
लेकिन गरीब मजदूर ने भोजन कम, दर-दर की ठोकर ज्यादा खाई।

मजदूरों ने हमारे घरों और जीवन की अपने खून पसीने से कि सिंचाई
लेकिन बदले में हमने उन्हें दिया मिलों दूर कि पैदल चलाई।

जिन मजदूरों ने सड़क और पटरी बनाकर हमारे देश की रफ्तार थी बढ़ाई
आखिर में यही सड़क और पटरी उन्ही के काम आई।

सरकारों ने भी एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर अपनी जिम्मेदारी है छुपाई
क्या यही वह समाजवाद है जिसकी संविधान देता है दुहाई।

गलती स्थानीय प्रशासन की भी है, जिन्होंने कभी नही की इनकी भलाई
आखिरकार प्रवासी बनकर आ गये दूसरे प्रदेश में करने के लिए कमाई।

अंतत: यह भी सिद्ध हो गया जब भी कोई विपदा देश में है आई
सबसे मजबूर पाये गये हमारे गरीब मजदूर भाई।

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