मन में
बिन मौसम बरसात हो,
जब बिन मेघ वज्रपात,
होता है तब मन में ,
पत्र विहिन वृक्ष के ,
दुुखो. का एहसास ।
जब निर्विकार मन में ,
बोता है कोई विकृत बीज,
आहत हो जाते हैं सपने,
निज अपनो से भयभीत ।
जब हर्षोल्लास की दुनिया से,
रहे न कोई प्रीत,
पग की ठोकरो से ,
न हो मन भयभीत ,
तब कोई मीरा बन ,
कान्हा से करे प्रीत ।
जब कभी एकान्त में ,
अन्तर्द्वन्द से मन जाय जीत,
तब कहीं शांत मन में ,
बनता अपना तस्वीर ।
बिन मौसम बरसात हो,
या बिन मेघ वज्रपात,
जो भी होता इस जीवन में,
दे जाता है कोई सीख ।।
https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/07/14
bahut sundar ritu ji…
Thanks sridhar ji
Good
Thanks
कमल
Good
सुन्दर