मन हमारे आजकल अपनेपन की परिभाषाये
मन हमारे आजकल अपनेपन की परिभाषाये बदल रहे हैं,,
सारे प्यारे दोस्त हमारे,, अब भीड़ सामान ही लग रहे हैं,,
पराई नगरी में भी अकसर लोगों में घुल जाया करता था,,
अब खुद की बस्ती में भी यूँ हीं,, तनहा- मारे रम रहे है,,
ये कैसा अजीब सा मोड़, मेरी ज़िन्दगी में आ रहा हैं..
अब दिल कुछ ज्यादा ही हावी, दिमाग पर हो रहा हैं..
जो सुकून मिला अकसर, माँ की गोद में सर रखकर,,
आज उसे ही पराये मन के करीब पाना चाह रहा हैं,,
कहीं पर तो होगी वो भी जिससे मैं अपने जज्बात बयां कर पाऊंगा,,,
बस पास जिसके होने पर,, धरती पर ही जन्नत महसूस कर जाऊँगा..
जब भी थक कर मैं अक्सर अपनी हर-एक शाम को पाऊंगा,,
गोद में रख कर सर उसकी बस आँखों में खो जाऊँगा,,
फिर धीरे-धीरे मेरे बालो को वो कुछ इस तरह से सहलाएगी,,
तितली चखती पुष्प-रस फिर ख्वाबों में शहद पिरो जायेगी,,
सिंगल बाबु कैसे समझाऊँ, क्या-क्या साज दिल में बजा करेंगे,,
सुनकर स्वीटू, एंक, अंकु, सारे ख्वाब हकीकत बन जाया करेंगे,,
अकसर सुन कर अल्हड़ बाते,, यूं ही मुझसे रूठ जाया करेगी,,
चुपके से मैं उसको मनाऊंगा और वो मन ही मन मुसकाया करेगी,,
पर दिल कुछ ज्यादा ही हावी, अब दिमाग पर हो रहा हैं..
जो सुकून मिला अकसर, माँ की गोद में सर रखकर,,
उसे ही आज पराये मन के करीब पाना चाह रहा हैं,,
Mindblowing poem friend
Shykriya dost
No words…speechless..what a poem!
Pls don’t be…. Need ur voice support as it sounds great 🙂
बहुत खूब
shaandaar!
जबरजस्त,, जिंदाबाद :p
Good
वाह-वाह
बहुत खूब