मुक्तक 32
हवाओं की नज़र से देखता हूँ मीर मैं तुझको ,
कि छूकर पास से निकलूं और तुझको खबर न हो .
ये दिल पत्तों सा हिलता है तेरी यादों के आने से,,
कभी तो झूम के बरसेगा सावन उम्मीद बाक़ी है .
…atr
हवाओं की नज़र से देखता हूँ मीर मैं तुझको ,
कि छूकर पास से निकलूं और तुझको खबर न हो .
ये दिल पत्तों सा हिलता है तेरी यादों के आने से,,
कभी तो झूम के बरसेगा सावन उम्मीद बाक़ी है .
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आााााााााााह
dhanyavad dost..
wonderful piece of expression and imagination..good one 🙂
shukriya …
Good
बहुत खूब