मुक्तक
“मुक्तक”
मुझे क्या हो गया है घर में घर अच्छा नही लगता
कोई बेचारगी में दर बदर अच्छा नही लगता !
मुझे सब सोहरते हासिल मगर किस काम की है ये
कि सूरज के बिना मुझको शहर अच्छा नही लगता !!
सभी अमृत्त के है प्यासे जहर किसको सुहाता है
हो हर दम खुशनुमा मौसम कहर अच्छा नही लगता !
जो मर्यादा न समझे दोस्त भी दुश्मन से क्या कम है
मुझे दुश्मन के धड पर उसका सर अच्छा नही लगता !!
उपाध्याय…
बेहतरीन जी