मुसाफिर अपनी राह
मुसाफिर अपनी राह से भटक रहा है
मृग जाने किस चाह से भटक रहा है
रहस्य दर्पण में नहीं आकृति में नहीं
दर्पण किस गुनाह से भटक रहा है
किस सत्य की खोज में मन व्याकुल
कोई फ़कीर दरगाह से भटक रहा है
अदृश्य विलक्षण तरंगे घूमती तेरे अंदर
मानव फिर किस चाह से भटक रहा है
मोह तेरा कवच के चक्रव्यूह में फंसा
मन कवच की दाह से भटक रहा है
राजेश’अरमान’
nice poetry…last two line are really nice
thanx ajay
किस सत्य की खोज में मन व्याकुल
कोई फ़कीर दरगाह से भटक रहा है … beautiful ..Subhan Allah
beautiful poetry 🙂
thanx rohan
😃😃