मृत्यु – एक पड़ाव
मृत्यु – एक पड़ाव
अंधकार नही ,
जीवन का द्वार है मृत्यु
भय नही ,
उससे मिलने की राह है मृत्यु
होता तात्पर्य मृत्यु का मिटना ,
पर मिटता यहां कुछ भी नहीं ,
फिर कैसी मृत्यु और कैसा अंत ,
यथार्थ में मृत्यु कभी होती ही नहीं
मृत्यु है ही नही मृत्यु ,
है तो सिर्फ़ मानव के अज्ञान में ,
मृत्यु नाम है बस एक पड़ाव का ,
रुक कर जहां, हो जाता मिलना उससे
यूई गर उसे पाने का नाम है मृत्यु ,
तो जीते जी क्यों ना वोह राह् चलूँ ,
जीवन भर मृत्यु को निर्भय सिमर कर,
जीवन की हर साँस उसमें जी सकूँ
…..….. यूई
मृत्यु नाम है बस एक पड़ाव का….true!